ऐ विकास तू रहता कहाँ ज़रा मुझे तू अपना पता बता
चला था मै कुछ अनसुलझे सवालों के जवाब ढूंढने इस बात से बेखबर कि इस सफर मे कुछ
नए सवाल ही खड़े हो जायेंगे |
चला था मै कुछ अनसुलझी पहेलियाँ सुलझाने के लिए इस बात से अनजान कि कुछ नई
पहेलियाँ ही मेरे रास्ते मे आ खड़ी होंगी |
होकर चला था मै तैयार अपने अनुभवों को समेटे हुए एक अनजाने सफर पर इस बात से
बेखबर कि कुछ नए अनुभव ही मेरी जिंदगी का एक हिस्सा बन जायेंगे |
होकर चला था मै तैयार उगते सूरज की वो किरणें देखने जो इस जाहाँ को रोशन कर देंगी
इस बात से बेखबर कि कुछ जगह तो अभी सिर्फ अँधेरी रातें ही हैं |
होकर चला था मै तैयार अपने नज़रिये से इस दुनिया को देखने के लिए इस बात से
अनजान कि ये दुनिया तो खुद ही एक नजरिया है इस दुनिया को देखने का |
होकर चला था मै तैयार उस विकास को ढूंढने जिस विकास के बलबूते पर हम अपने देश को
दुनिया की महाशक्ति के रूप मे देखना चाहते हैं इस बात से बेखबर कि ये विकास तो सिर्फ
कोरी कल्पनाओं में ही बस्ता है |
ऐ विकास तू रहता कहाँ ज़रा मुझे तू अपना पता बता |
मैं तो तुझे ढूंढने चला था उस किसान के खेत में जो खुद भूखा रहकर पूरे देश की भूख
मिटाता है |
मैं तो तुझे ढूंढने चला था उस मज़दूर के घर मे जो बड़ी-बड़ी इमारतें बनाकर खुद एक छोटी
सी झोंपड़ी मे रहने को मज़बूर है |
मैं तो तुझे ढूंढता हुआ जा पंहुचा था उस घर में जहाँ दो वक़्त की रोटी के लिए मासूम बच्चे
इंतज़ार करते दिखाई देते हैं |
ऐ विकास तू रहता कहाँ ज़रा मुझे तू अपना पता बता |
क्यों तू आँख मोड़ लेता है गाँव कि उन गलियों से जहाँ से गुज़रते लोग हर पल ज़िन्दगी की
एक नई जंग लड़ रहे हैं |
क्यों तू आँख मोड़ लेता है किसी गुमनाम सी जगह पर बैठे उस मासूम बच्चे के चेहरे से जो
अपने सपनों की एक नई उड़ान भरने का इंतज़ार कर रहा है |
क्यों तू आँख मोड़ लेता है उन नदियों पर बाँध बनाकर जिन नदियों ने कभी रुकना नहीं
सीखा |
क्यों तू आँख मोड़ लेता है उन जंगलों को जलाकर जो ज़रिया हैं न जाने कितने लोगों के
जीने का |
क्यों तू आँख मोड़ लेता है ज़हर फैलाकर पर्वत और पहाड़ों पर बहती उन हवाओं में जो हर
पल हमे जीने का एक नया एहसास कराती हैं |
ऐ विकास मै पूछता हूँ तुझसे आज कब तक करेगा तू ये विकास!
– Aman Walia (MAD18013)
Leave a Reply